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ख्वाबों का सागर

ख्वाबों का सागर..


ख्वाब देखे थे मैंने भी,
इश्क के भी और उड़ान के भी!
पिरोए हुए ख्वाब का एक दरिया सा बन गया,
ना जाने कैसे वो फिर सागर से मिल गया!

सोचती हूं कि इस सागर की भी तो कोई मंजिल होगी,
यूंही इतने दरियो को अपने पास क्यू बुलाता होगा?
फिर लगा.. इसका भी कोई ख्वाब जरूर होगा,
जो पूरा ना होने पर,दिल उसका भी उदास होगा!

बहते हुए ख्वाब को देख, ये दिल टूटा,
दिल का कोना कोना रूठा!
लगा ऐसे, जैसे हर इंसान दुनियां में हैं झूठा,
वक्त गुजरने पर ये दिल फिर खड़ा हो उठा!

बन गया ये दिल जैसे किसी शहर का नवाब
और पिरोने लगा फिर अपना ख्वाब!
इस ख्वाब को पूरा तो होना ही था,
क्योंकि इस दिल को भी एक रात चैन से सोना था!

आज अक्सर ये दिल सोचता हैं,
कौन है वो जो ख्वाब पूरे करने से रोकता है?
शायद, किसी ओर का मक़सद....
या खुद में पाली हुई एक हसरत?

ख्वाब पूरे करने के लिए कोई रुकता नही,
और आजकल हम भी किसीके आगे झुकते नहीं!
क्योंकि... सागर भी तो बहता चला गया,
जब उसने भी उसका मक़सद पाया!
                      ~आयुषी यावलकर 💕

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9 Comments

Shnaya

28-May-2022 03:17 PM

बेहतरीन

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Reyaan

28-May-2022 01:18 AM

बहुत खूब

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Chirag chirag

27-May-2022 05:24 PM

Nice

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